Tuesday, 21 November 2017

क्या ऐसे बनेंगी महिलाएं सश्क्त?

नगर निकाय चुनाव का बिगुल बजते ही हर गली, चौराहों पर रौनक आ गयी, हर कोई अपने अपने हिसाब से अपने प्रत्याशियों की जीत, वोट इत्यादि का अनुमान लगा रहा है। हर बार की तरह इस बार भी कुछ वार्ड की सीटें महिला आरक्षित हो गयी हैं। जिसे महिला भागीदारी का प्रतीक माना जाता है, इस उम्मीद के साथ कि भविष्य में महिला नेत़ृत्व मज़बूत होगा। देश में महिलाओं की स्थिति सुधरेगी इत्यादि।

लेकिन जब तस्वीर का दूसरा रुख देखो तो वास्तविकता इतनी भयानक रुप में सामने आती हे कि महिला सश्क्तीकरण की सारी उम्मीदें चकनाचूर होकर बिखर जाती हैं। कानपुर का बेहद घनी आबादी वाला मुस्लिम बहुल क्षेत्र कर्नलगंज के वार्ड 110 भी इस बार महिला आरक्षित हो गया। किंतु आप क्षेत्र में जाकर देखें तो आपको एक भी महिला की तस्वीर का पोस्टर, बैनर कहीं नहीं नज़र आएगा। ऐसा नहीं है कि कोई महिला चुनाव लड़ने को तैयार नहीं है या नहीं लड़ रही है। हर दूसरे घर से आपको एक महिला उम्मीदवार मिल जाएगी लेकिन पोस्टर, बैनर पर इनके पति, भाई, बेटे ही आपको नज़र आएंगे।

इतना ही हर रोज़, हर घण्टे आपको ढोल ताशे बजाकर जनसंपर्क करने वालों का झुण्ड भी नज़र आएगा लेकिन उसमें आपको कोई महिला नहीं दिखाई देगी। अब सवाल यह उठता है कि क्या यह महिलाएं नेतृत्व करने योग्य नहीं हैं? करोड़ो का राजस्व देने वाले इस क्षेत्र के हर घर में कोई न कोई कारोबार होता है और इनमें 90 प्रतिशत महिलाएं ही होती हैं। वे घरों में सिलाई से लेकर हर प्रकार के कार्य करती मिल जाएंगी। इतना ही नहीं घर के हर छोटे मोटे काम इन ही महिलाओं के ज़िम्मे होते हैं चाहे सुबह सुबह बच्चों को स्कूल पहुंचाना हो या धनिया मिर्चा, अदरक खरीद कर लानी हो, या फिर शादी ब्याह के अहम फैसले लेने हो सारा काम स्वंय महिलाएं ही करती हैं।


जब ज़िंदगी के हर छोटे बड़े फैसले यह महिलाएं ले सकती हैं तो फिर क्यों क्षेत्र का प्रतिनिधत्व नहीं कर सकतीं?  घर के पुरूषों से पूछने पर बहुत ही हादयस्पद जवाब मिलता है, उनका कहना है कि वह अपनी महिलाओं को इस सब चुनावी झंझट में नहीं डालना चाहते, वे केवल उन्हें चुनावी मैदान में इसलिए उतारते हैं क्योंकि कहीं सत्ता उनके हाथ से छीन न जाए।  अभी हाल ही में आई इकोनॉमी टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार भारत लैगिंग समानता के मामले में विश्व में 108 वें नबंर पर है। क्या इस प्रकार से हम देश में महिला सशक्तीकरण कर पाएंगे? या केवल महिलासशक्तीकरण का नारा देकर हमने समझ लिया कि हो गया सश्कत्तीकरण।

ज़िंदगी सड़क किनारे की..

पिछले कई वर्षों में हमारे देश ने दुनिया में अपना नाम और कद दोनो ऊंचा किया है़, विकास के नाम पर ऊंची ऊंची आलीशान इमारतें, चौड़ी-चौड़ी ...