Thursday, 15 June 2017

violence spreading through social media

सोशल मीडिया देश की अखंडता को तोड़ने का साधन बन गया है


गत वर्षों में हमने देश में उग्र भीड़ द्वारा कानून हाथ में लिये जाने की कई घटनाओं को देखा है। इनमें अकसर घटनाएं सोशल मीडिया पर फैली अफवाह के कारण घटित हुई हैं। चाहे झारखंड के उत्तम कुमार के तीन भाइयों की पीट पीटकर हत्या का मामला हो या फिर राजस्थान के पहलू खान की हत्या। इन घटनाओं के बाद भड़की हिंसा को कंट्रोल करने के लिए पुलिस को इण्टरनेट सेवाएं बंद करनी पड़ी थीं।

इसी प्रकार कश्मीर में भड़की हिंसा को कंट्रोल करने के लिए भी प्रशासन को इण्टरनेट सेवाओं को बंद करना पड़ता है। प्रशासन और पुलिस अधिकारियों का कहना है कि कानून व्यवस्था बनाए रखने में सोशल मीडिया एक चुनौती साबित हो रही है क्योंकि पिछले कई महीनों के दौरान जितनी भी हिंसक घटनाएं हुई हैं उनमें सोशल मीडिया के ज़रिए ही नफरत फैलाने की कोशिश की गई।

चाहे वह फोटोशॉप के ज़रिए तैयार की गई भड़काऊ तस्वीर हो या फिर लोगों के बीच नफरत पैदा करने वाली पोस्ट हो। सोशल मीडिया ने माहौल खराब करने का काम किया है और हैरानी की बात तो यह है कि सोशल मीडिया के ज़रिए फैलायी जाने वाली अफवाह के शिकार सबसे अधिक पढ़े लिखे लोग हो रहे हैं।

साइबर क्राइम एक्सपर्ट का मानना है कि अभी तक ऐसे कानून नहीं बन पाए हैं जिनके ज़रिए सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाने वालों से सख्ती से निपटा जाए। केवल इंफार्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट के ज़रिए सोशल मीडिया पर ज़हर फैलाने वालों पर नकेल नहीं कसी जा सकती है। इसके लिए और भी उपाय किए जाने चाहिए और इसमें पुलिस के साथ-साथ दूसरे संगठनों को भी शामिल किया जाना चाहिए।


लेकिन सवाल यह है कि उस देशवासियों को एकता पाठ पढ़ाने के लिए सख्त कानून की ज़रूरत पड़ रही है जिस देश की रग-रग में एकता अखंडता बसी थी। जिस देश की संस्कृति ने प्रेम और सौहार्द की ऐसी मिसाल कायम की थी कि दुनिया रश्क करती थी। सोशल मीडिया पर हम देशवासी ही तो सक्रिय रहते हैं तो क्या हमारा यह कर्तव्य नहीं बनता कि हम इन नफरत के पुजारियों से बच कर रहें उनके बहकावे में न आयें बिना तहकीकात किये किसी भी पोस्ट पर भरोसा न करें आखिर यह देश हमारा है तो अमन और शांति कायम रखने में हमारा भी सहयोग होना चाहिए।

Tuesday, 6 June 2017

stand with ndtv

हेलो। मेरा नाम लोकतंत्र है।



मैं अवाम की आवाज़ हूँ , घोर अँधेरे में उम्मीद का एक चिराग़ हूँ। 
मेरे जन्म लेते ही दुनिया में हक़ की, इंसाफ की आवाज़ बुलंद होने लगी। मज़लूमों का, बेसहारों का, समाज के द्वारा शोषित तबके का मैं सहारा बन गया। दुनिया के कोने कोने में मेरा स्वागत किया गया। मुझे अपनाने के लिए लोग बेचैन हो गए।

उसी समय हिंदुस्तान भी अंग्रेज़ों की गुलामी से कराह रहा था। जनता ज़ुल्म सह सहकर बेहाल हो चुकी थी। हर तरफ से अंग्रेज़ों को देश से भगाने की सदाएं बुलंद हो रही थीं। आख़िरकार हिंदुस्तान अंग्रेज़ों की गुलामी से मुक्त हो गया तब भीमराव अंबेडकर मुझे सजा संवारकर इस देश में ले आये। देशवासियों ने भी मुझे ख़ुशी ख़ुशी गले लगाया। हर भारतीय को मुझसे प्रेम और मुझ पर विश्वास हो गया। देश मेरे कंधों पर चढ़ कर विकास की नई डगर पर चलने लगा। मेरे कारण भारत का नाम दुनिया के कोने कोने में छा गया। मैं भी अपनी और इस देश की तरक़्क़ी होते देख ख़ुशी से फूला नहीं  समाता था। 
लेकिन फिर ना जाने किसकी नज़र लग गई। जिस देश ने मुझे इतना मान सम्मान दिया था आज वो मेरा गला घोंट रहा है। मुझे मारने का प्रयास कर रहा है जो लोग मुझे बचाने की जद्दोजहद कर रहे हैं उन्हें भी नहीं बख़्शा जा रहा है।

मुझे अपने मरने का अफ़सोस नहीं अफ़सोस इस बात का है कि सत्ता का सुख ले रहे लोग उन लोगों के प्रयास भूल गए जिन्होंने इस देश में मुझे लाने के लिए क्या क्या जतन नहीं किये। मेरे मरने के बाद ये देश फिर वहीं पहुंच जाएगा जहाँ से आगे बढ़ा था। मेरी बरसों की तपस्या बेकार चली जाएगी।।
(लोकतंत्र की घुटी हुई आवाज़)

ज़िंदगी सड़क किनारे की..

पिछले कई वर्षों में हमारे देश ने दुनिया में अपना नाम और कद दोनो ऊंचा किया है़, विकास के नाम पर ऊंची ऊंची आलीशान इमारतें, चौड़ी-चौड़ी ...