Tuesday, 6 June 2017

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हेलो। मेरा नाम लोकतंत्र है।



मैं अवाम की आवाज़ हूँ , घोर अँधेरे में उम्मीद का एक चिराग़ हूँ। 
मेरे जन्म लेते ही दुनिया में हक़ की, इंसाफ की आवाज़ बुलंद होने लगी। मज़लूमों का, बेसहारों का, समाज के द्वारा शोषित तबके का मैं सहारा बन गया। दुनिया के कोने कोने में मेरा स्वागत किया गया। मुझे अपनाने के लिए लोग बेचैन हो गए।

उसी समय हिंदुस्तान भी अंग्रेज़ों की गुलामी से कराह रहा था। जनता ज़ुल्म सह सहकर बेहाल हो चुकी थी। हर तरफ से अंग्रेज़ों को देश से भगाने की सदाएं बुलंद हो रही थीं। आख़िरकार हिंदुस्तान अंग्रेज़ों की गुलामी से मुक्त हो गया तब भीमराव अंबेडकर मुझे सजा संवारकर इस देश में ले आये। देशवासियों ने भी मुझे ख़ुशी ख़ुशी गले लगाया। हर भारतीय को मुझसे प्रेम और मुझ पर विश्वास हो गया। देश मेरे कंधों पर चढ़ कर विकास की नई डगर पर चलने लगा। मेरे कारण भारत का नाम दुनिया के कोने कोने में छा गया। मैं भी अपनी और इस देश की तरक़्क़ी होते देख ख़ुशी से फूला नहीं  समाता था। 
लेकिन फिर ना जाने किसकी नज़र लग गई। जिस देश ने मुझे इतना मान सम्मान दिया था आज वो मेरा गला घोंट रहा है। मुझे मारने का प्रयास कर रहा है जो लोग मुझे बचाने की जद्दोजहद कर रहे हैं उन्हें भी नहीं बख़्शा जा रहा है।

मुझे अपने मरने का अफ़सोस नहीं अफ़सोस इस बात का है कि सत्ता का सुख ले रहे लोग उन लोगों के प्रयास भूल गए जिन्होंने इस देश में मुझे लाने के लिए क्या क्या जतन नहीं किये। मेरे मरने के बाद ये देश फिर वहीं पहुंच जाएगा जहाँ से आगे बढ़ा था। मेरी बरसों की तपस्या बेकार चली जाएगी।।
(लोकतंत्र की घुटी हुई आवाज़)

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