क्या बहनजी डूबती नैया को बचा पाएंगी ??
बहुजन समाज पार्टी एक सार्वभौमिक न्याय , समानता, भाईचारे और सर्वोच्च सिद्धान्त के रूप में स्थापित की गयी थी। लेकिन चार बार मुख्यमंत्री बन उत्तर प्रदेश सँभालने वाली मायावती ने जिस तरह बिना ठोस रणनीति के चुनावी मैदान में उत्तर कर अपनी ही नई अपनी पार्टी की साख की भी लुटिया डुबोई है उससे तो यही प्रतीत होता है कि कांशीराम जी की मेहनत और सख्त रवैया रखने वाली बहनजी इतिहास के काल में समाने वाली हैं। चार बार यूपी की सत्ता चलाने के बावजूद बहन जी एक ठोस नेतृत्व नहीं दे पायी इससे बड़ा बसपा का दुर्भाग्य क्या हो सकता है।
मायावती की असफलता की कहानी की शुरुआत तभी हो गई थी जब 2007 में मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने चौथे कार्यकाल की शपथ ली। सत्ता की कुर्सी पे बैठते ही उन्होंने मुर्तिया और पार्क बनवाने शुरू कर दिए। जो 2012 में उनकी हार का प्रमुख कारण बना। कुछ अच्छे काम भी किये जैसे सख्त और मज़बूत प्रशासन व्यवस्था, बसपा का शासन हमेशा से ही मज़बूत प्रशासनिक व्यवस्था के लिए जाना जाता रहा है लेकिन फिर भी 2012 चुनाव में सपा ने उनका सफाया कर सत्ता की कुर्सी पे अखिलेश यादव को बैठा दिया। 2012 की हार से सबक लिए बिना ही वो 2014 में लोकसभा के चुनावी दंगल में उत्तर पड़ीं परिणामस्वरूप मोदी लहर के आगे वो अपना खाता तक नहीं खोल सकीं उसके पश्चात् भी लगातार हार के बावजूद 2017 में कोई ठोस रणनीति नहीं बनायी जिसका नतीजा ये हुआ के अब बसपा के अस्तित्व पे ही खतरा मंडराने लगा है .अब तो उनके लिए राज्यसभा सदस्य बनने के भी सभी रास्ते बंद नज़र आ रहे हैं ।मुख्यमंत्री रहते हुए वे विधान परिषद की सदस्य थीं लेकिन 2012 में चुनाव हारने के बाद उन्होंने इस्तीफा दिया और राज्यसभा में दाखिल हो गईं क्योंकि उस समय बसपा के 87 विधायक विधानसभा में थे, जोकि इलेक्ट्रॉल कॉलेज प्रोविज़न के हिसाब से राज्यसभा सदस्य बनने के लिए काफी थे लेकिन इस बार स्त्तिथि विपरीत है यूपी में 19 कैंडिडेट जीत पाए हैं ऐसे में उन्हें राज्यसभा में जाने के लिए सपा से गठबंधन करना होगा।
हैरानी होती है कि एक लंबी राजनैतिक पारी खेलने के बावजूद वह जुझारू खिलाड़ी की तरह बाज़ी पलटने में माहिर नहीं बन सकीं और न ही अपने परंपरागत वोट बैंक को बचा पाई। बल्कि अविकसित बुद्धि का सबूत देते हुए सबसे ज़्यादा मुस्लिम प्रत्याशी को चुनाव में उतार अपनी प्रतिद्वन्दी पार्टी का फ़ायदा करा दिया। अब उनके पास एकमात्र विकल्प यही है के अपनी हार की समीक्षा करते हुए एक मज़बूत रणनीति बनाये वरना बसपा इतिहास बनकर रह जाएगी।
मायावती की असफलता की कहानी की शुरुआत तभी हो गई थी जब 2007 में मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने चौथे कार्यकाल की शपथ ली। सत्ता की कुर्सी पे बैठते ही उन्होंने मुर्तिया और पार्क बनवाने शुरू कर दिए। जो 2012 में उनकी हार का प्रमुख कारण बना। कुछ अच्छे काम भी किये जैसे सख्त और मज़बूत प्रशासन व्यवस्था, बसपा का शासन हमेशा से ही मज़बूत प्रशासनिक व्यवस्था के लिए जाना जाता रहा है लेकिन फिर भी 2012 चुनाव में सपा ने उनका सफाया कर सत्ता की कुर्सी पे अखिलेश यादव को बैठा दिया। 2012 की हार से सबक लिए बिना ही वो 2014 में लोकसभा के चुनावी दंगल में उत्तर पड़ीं परिणामस्वरूप मोदी लहर के आगे वो अपना खाता तक नहीं खोल सकीं उसके पश्चात् भी लगातार हार के बावजूद 2017 में कोई ठोस रणनीति नहीं बनायी जिसका नतीजा ये हुआ के अब बसपा के अस्तित्व पे ही खतरा मंडराने लगा है .अब तो उनके लिए राज्यसभा सदस्य बनने के भी सभी रास्ते बंद नज़र आ रहे हैं ।मुख्यमंत्री रहते हुए वे विधान परिषद की सदस्य थीं लेकिन 2012 में चुनाव हारने के बाद उन्होंने इस्तीफा दिया और राज्यसभा में दाखिल हो गईं क्योंकि उस समय बसपा के 87 विधायक विधानसभा में थे, जोकि इलेक्ट्रॉल कॉलेज प्रोविज़न के हिसाब से राज्यसभा सदस्य बनने के लिए काफी थे लेकिन इस बार स्त्तिथि विपरीत है यूपी में 19 कैंडिडेट जीत पाए हैं ऐसे में उन्हें राज्यसभा में जाने के लिए सपा से गठबंधन करना होगा।
हैरानी होती है कि एक लंबी राजनैतिक पारी खेलने के बावजूद वह जुझारू खिलाड़ी की तरह बाज़ी पलटने में माहिर नहीं बन सकीं और न ही अपने परंपरागत वोट बैंक को बचा पाई। बल्कि अविकसित बुद्धि का सबूत देते हुए सबसे ज़्यादा मुस्लिम प्रत्याशी को चुनाव में उतार अपनी प्रतिद्वन्दी पार्टी का फ़ायदा करा दिया। अब उनके पास एकमात्र विकल्प यही है के अपनी हार की समीक्षा करते हुए एक मज़बूत रणनीति बनाये वरना बसपा इतिहास बनकर रह जाएगी।
बहुत बढ़िया। ��
ReplyDelete😊😊😊
Deletebilkul sahi kaha, lakin mayawati aur akhilesh ko ab UP me dobara satta me wapas ane k liye dono ko bahut papad belne padenge,
ReplyDeleteAisa bhi ni hai. Har kisi ka daur hota h. Or ajkal bjp ka daur h
DeleteJanta modi ki lahar ke sath hai..vishwas hai badlav hoga nayi government se..so giving chances..
ReplyDeleteJanta modi ki lahar ke sath hai..vishwas hai badlav hoga nayi government se..so giving chances..
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