Monday, 14 August 2017

न्याय फांसी पर चढ़ चुका है


मैं हुं न्याय, दुनिया में कोई ऐसे व्यक्ति नहीं जो सुबह से लेकर शाम तक में मुझे याद न करे। सब लोग मुझसे इतना प्यार करते हैं कि दिन में एक बार तो ज़रूर मेरा नाम लेते हैं। हर देश, हर समाज, हर समूह, हर व्यक्ति हर नेता यही कहता है कि वह मेरे साथ है, मुझे पसंद करता है, मुझसे प्यार करता है, मेरे साथ खड़ा रहना चाहता है। हर देश ने मेरे लिए अपने अपने तौर पर व्यवस्था कर रखी है ताकि मैं हर किसी को मिल सकूं, इंसानों के चेहरों पर मैं मुस्कान ला सकूं।

यदि मैं आपको ज़्यादा घुमाऊं न और सीधे तौर पर अपने बारे में बताऊं तो मैं वह व्यवस्था हूं जो व्यक्तियों को अन्य व्यक्तियों के साथ, समुहों को अन्य समूहों के साथ, गुणवता को अन्य गुणवता के साथ बांधे रखती है ताकि एक व्यवस्था, एक प्रणाली, एक प्रक्रिया का निर्माण हो सके। दुनिया के दार्शनिकों ने मुझे अलग अलग रूप में परिभाषित किया है। प्लेटो ने मुझे आत्मा का गुण बताया है तो सिसरो ने आंतरिक अच्छाई। अरस्तू ने समानता का स्तर बताया तो रूसो ने मुझे स्वतंत्रता, समानता और कानून का मिश्रण बताया।

जब भारत का नाम मैं सुनता हुं तो सबसे पहले मेरे सामने विश्व के महान व्यक्तियों में से एक बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर का चेहरा आता है जिन्होंने अपने देश में मुझे जगह देने के लिए लोगों को प्रेरित किया। ऐसे लोगों तक मुझे पहुंचाने की कोशिश की जिन्हें बरसों से अपनी अभिव्यक्ति की आज़ादी से वंचित रखा गया था, जिन्हें समाज में हीनता की भावना से देखा जाता था जिन्हें समानता का अधिकार नहीं था। उन सभी लोगों का ख्याल कर के उन्होंने एक ऐसा संविघान निर्मित करवाया जहां सब अनेकता में एकता के साथ रह सकें। और उसके बाद मैं भारत और भारतवासियों के बीच घुलमिल कर रहने लगा। इस देश को अपना घर समझने लगा यहां के लोगों को अपना परिवार।

लेकिन फिर धीरे धीरे कर के मैं लोगों के दिलों से फिर दिमाग से और अब याद्दाश्त से पूरी तरह गुम हो गया। लोगों को पुकारता हुं कि आओ मेरा साथ दो, मुझे अकेला न छोड़ो लेकिन कोई मेरी आवाज़ नहीं सुनता, कोई मेरे पास नहीं आता, मै बिल्कुल तन्हा हो गया जैसे सहरा में कोई गुमनाम प्राणी, वह चीखता है लेकिन कोई सुनने वाला नहीं होता, वह तड़पता है लेकिन कोई महसूस करने वाला नहीं होता।

नेता, मंत्री सब मेरे नाम पर वोट मांगते हैं मेरे साथ चलने का लोगों से वादा करते हैं लेकिन कुछ समय बाद भूल जाते हैं। बहुत छटपटाता हुं यह देखकर कि जिस भारत की आज़ादी के समय कल्पना की गयी थी, जिस भारत को लेकर महापुरूषों ने सपने देखें थे 70 साल बाद वह भारत कहीं नहीं दिखता। बल्कि एक ऐसा भारत बन गया जो सांप्रदायिकता को बढ़ावा देता है, जो इंसानियत का गला घोंटता है, जो लोगों को विभाजित करने का प्रयास करता है, जो नफरत को बढ़ावा देता है। फिर भी मैं उम्मीद करता हूं एक नई सुबह अवश्य रौशन होगी उस भारत की जिसके लिए संविधान निर्माताओं ने सपने देखे थें। वह दिन ज़रूर आएगा जब लोग मेरा नाम लेने के साथ ही मेरा साथ देने की भी कोशिश करेंगे, मेरे लिए आवाज़ उठाएगें, मेरे खिलाफ जाने वालों के लिए लड़ पड़ेंगे। वह सुबह ज़रुर आएगी।


ज़िंदगी सड़क किनारे की..

पिछले कई वर्षों में हमारे देश ने दुनिया में अपना नाम और कद दोनो ऊंचा किया है़, विकास के नाम पर ऊंची ऊंची आलीशान इमारतें, चौड़ी-चौड़ी ...