Monday, 29 May 2017

heaven of earth

कश्मीर : धरती का स्वर्ग 


कश्मीर की खूबसूरती से प्रसन्न होकर प्रसिद्ध शायर अमीर ख़ुसरो ने कहा था 
'गर फिरदौस बर रूए ज़मीं अस्त, 
हमी अस्तो, हमी अस्तो, हमी अस्तो '
अथार्थ धरती पर कहीं स्वर्ग है तो वह यहीं है, यही हैं यहीं है। 
       हम सब के सामने कश्मीर का नाम आते ही ज़ेहन में एक हसीन मंज़र दौड़ जाता है। जहाँ हसीन हसीन वादियां, सेबों के बाग़ और बहुत ही खूबसूरत खूबसूरत तसव्वुर दिलों दिमाग़ में छा जाता है और मन कश्मीर की सैर करने को मचल उठता है। लेकिन वहाँ के लोगों के लिए अब ये जन्नत नहीं जहन्नम बन गया है। और इसका असर सबसे ज़्यादा मासूम बच्चों पर पड़ रहा है। आज बीबीसी हिंदी ने वहां के बच्चों द्वारा बनाई गई पेंटिंग्स प्रकाशित की हैं जिन्हे देख के आंखे दंग रह गईं। जिस बचपन में ख्वाब होते हैं, खिलखिलाहट होती है, मुस्कान होती है, परियों की दुनिया की कल्पना और कार्टून्स होते हैं, जिन मन के कैनवास में रंग बिरंगे खूबसूरत रंग होते हैं वहां केवल लाल रंग मौजूद है। आँखों में हुड़दंग की जगह ख़ौफ़ मौजूद है। दिल में हसीं ख्वाब की जगह आग में जलते हुए मंज़र मौजूद हैं। क्या होगा ऐसे मासूमों का भविष्य जो अभी से ऐसे माहौल में पल रहे हैं और दिल को छू देने वाले मंज़र अपने हाथो से कागज़ पर उकेर रहे हैं। सैनिकों द्वारा चलाई जा रही पैलेट गन से वहां के लोगों की आँखों की रौशनी जा रही है। इसका दर्द भी बच्चों में मौजूद है। 
         मासूमों के हाथ की किलकारी से कश्मीर का दर्द छलक कर इन तस्वीरों में फैला सा दिखता है। क्या ये इन हालत में उज्वल भविष्य के सपने संजो पाएंगे ? क्या कभी कश्मीर मसले का हल निकल पाएगा? क्या हम इस दोज़ख बनती जन्नत के फूलों को बेहतर                                           ज़िन्दगी दे सकते हैं?




Wednesday, 10 May 2017

इस गाँव में रहने जाएंगे तो सरकार देगी डेढ़ लाख रूपए 


भारत में भले ही जनसंख्या को लेकर सरकार परेशान हो। लेकिन, पूरी दुनिया में कई ऐसे देश हैं जहां जनसंख्या की कमी सरकारों के लिए चिंता विषय बनी हुई हैं। इन देशों की सरकारें लगातार जनसंख्या बढ़ाने के लिए नागरिकों को तरह-तरह के प्रलोभन दिया करती है। कुछ देशों की सरकारें लोगों से ज्यादा बच्चे पैदा करने की अपील करती हैं। यही नहीं ज्यादा बच्चे पैदा करने के लिए तरह-तरह की सुविधाएं भी मुहैया कराती हैं। इटली का एक गांव भी जनसंख्या की कमी की समस्या से जूझ रहा है। इसे लेकर गांव के मेयर ने प्रस्ताव रखा है। प्रस्ताव के तहत गांव में आकर रहने वाले शख्स को 1,700 पाउंड (करीब 1 लाख 43 रुपए) दिया जाएगा और यहां का किराया सिर्फ 40 पाउंड (करीब 3400 रुपए) प्रति महीने होगा।
इटली के पहाड़ी इलाके में बसे इस गांव के मेयर ने लोगों को आकर्षित करने के लिए प्रस्ताव रखा है ताकि गांव में नया खून (नए लोग) आएं। मेयर को चिंता है कि गांव ‘भूतहा’ ना बन जाए। दरअसल पहाड़ी पर बसा गांव बोरमिडा वास्तव में कोई पर्यटन स्थल नहीं है। यह गांव पर्वतीय लिगुरिया क्षेत्र में है। गांव में सिर्फ 394 लोग निवास करते हैं। मेयर डेनियल गैल्लियानो का कहना है कि वर्तमान में यह विचार सिर्फ एक प्रस्ताव है। इस प्लान को म्यूनिसिपल काउंसिल द्वारा पास किया जाएगा। अपने इस प्लान के बारे में उन्होंने फेसबुक पर पोस्ट किया है। इस पर यूजर्स की ओर से प्रतिक्रिया भी दी गई। एक शख्स ने लिखा कि अगर वहां बेहतर वाई-फाई है तो वह आने के लिए तैयार है। वहीं, दूसरे का कहना है कि कब आना है बताओ, मैं वहां आ जाउंगा। बता दें कि इटली का यह गांव अकेला नहीं है, जहां जनसंख्या को लेकर इस तरह की समस्या हो बल्कि अमेरिका, न्यूजीलैंड, इंडोनेशिया, कनाडा समेत कई देश हैं, जहां इस तरह की दिक्कते हैं।

Tuesday, 9 May 2017

U.P. GOVERMENT

सुशासन के नाम पर कुशासन



गुंडाराज पर सपा सरकार को घेरने वाली बीजेपी उत्तर प्रदेश में सत्ता में आने के बाद खुद गुंडागर्दी ख़त्म करने में नाकाम साबित हो रही है। सरकार बने अभी जुम्मा जुम्मा चार दिन ही हुए हैं कि सत्ता पक्ष और खाकी में संघर्ष शुरू हो गया है। 
     कुछ समय पहले सहारनपुर के एसएसपी लव कुमार ने आरोप लगाया था कि सांसद राघव लखनपाल समेत सैकड़ों लोगों ने उनके घर पर पत्थरबाज़ी की थी। हालाँकि सांसद महोदय ने आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि लव कुमार पिछली सरकार के इशारे पर काम कर रहे हैं। इसका नतीजा ये हुआ कि एसएसपी सहारनपुर के पद से उन्हें हटा दिया गया। 
    मेरठ में बीजेपी नेता संजय त्यागी पुलिस से भिड़ गए जब उनके बेटे की गाड़ी से हूटर हटवाया जाने लगा। उसके बाद तो हद ही हो गई उन्होंने बेटे को थाने से छुड़ाने के ;लिए जमकर हंगामा किया। नतीजा ये हुआ की बेटे को छोड़ दिया गया और पुलिस अधिकारी को हटा दिया गया। 
    योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के बाद ऐसी तमाम घटनाएं लगातार देखने सुनने को मिल रहीं हैं। हाल ही की प्रचलित घटना गोरखपुर की है जहाँ बीजेपी के कद्दावर नेता और स्थानीय विधायक राधा मोहन अग्रवाल ने आईपीएस अधिकारी और गोरखनाथ क्षेत्र की क्षेत्राधिकारी चारु निगम के साथ ऐसी बदसलूकी की कि उनके आंख से आंसू आ गए। 
     इस प्रकार की घटनाएं कोई नई नहीं है पहले भी सत्ता पक्ष की गुंडागर्दी हम देखते सुनते रहे हैं बस फ़र्क़ इतना है कि चेहरे बदल गए हैं। जिन लोगों ने कुशासन गिना कर सुशासन के नाम पर वोट माँगा था सत्ता में आते ही वो भी पुराने ढर्रे पर चलने लगें। करे भी तो क्या ये सत्ता का लोभ है ही ऐसी चीज़ हालांकि मुख्यमंत्री की अपने विधायकों और समर्थकों से बार बार यही अपील रही है कि 'जोश में होश न खोयें' फिर भी कार्यकर्त्ता उनकी बातों को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं। अब सवाल यह खड़ा होता है कि जो व्यक्ति अपने समर्थकों को नहीं संभाल पा रहा है वो प्रदेश के लिए चुनौती बने क़ानून वयवस्था को कैसे ठीक करेगा?? हालाँकि उनके सख्त तेवर हमेशा यही दर्शाते रहे हैं कि वो प्रदेश में सुशासन ही लाना चाहते हैं लेकिन उनके तेवर और पार्टी कार्यकर्ताओं की सोच में तालमेल बिलकुल नहीं दिखाई देता। समय रहते मुख्यमंत्री को इसे सही करना होगा वरना पिछली सरकारों का उन्होंने हश्र देखा ही है।   

Saturday, 6 May 2017

Recep Tayyip Erdogan

इंसाफ पसंद लोगों की पहली पसंद : रजब तईब इरदुगान


तुर्की के ऐतिहासिक शहर इस्तांबुल  में जन्मे रजब तईब इरदुगान की प्रारंभिक शिक्षा की शुरुआत मदरसे से हुई।  उनके पिता फल विक्रेता थे और उनकी स्तिथि इतनी अच्छी नहीं थी कि वह अपने लड़के को किसी अच्छे स्कूल में पढ़ाते। कभी कभी तो घर के हालात ऐसे हो जाते कि खाने के नाम पर खरबूजे के साथ रोटी खानी पड़ती। धीरे धीरे समय बीतता गया और तईब इरदुगान ने 1937 में उसी मदरसे से अपनी पढ़ाई पूरी की और तुर्की के प्रसिद्ध विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र एवं प्रशासनिक विज्ञान में मास्टर किया।

      मुस्तफा कमाल पाशा ने तुर्की में सेकुलरिज्म के नाम पर जो क़ानून बनाया वह बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के सेकुलरिज्म से बिलकुल भिन्न था। हमारे देश में सेकुलरिज्म के नाम पर हर तरह की आज़ादी है धार्मिक स्वतंत्रता है लेकिन तुर्की में स्वतंत्रता के नाम पर इस्लामिक कल्चर पर पूरी तरह से पाबन्दी लगा दी गई हिजाब नक़ाब पर पूरी तरह बैन लगा दिया गया। अरबी पढ़ने पर पाबंदी लगा दी गई। इसी माहौल में रजब तईब इरदुगान पहली बार 1994 में वेलफेयर पार्टी में रहकर इस्तांबुल के मेयर बनते हैं और 1998 तक मेयर के पद पर रहते हैं। मेयर के तौर पर अपनी ईमानदारी, विकास के कामो की बदौलत तरक़्क़ी हासिल करते हुए 2003 में तुर्की के प्रधानमंत्री बनते हैं। 2014 में 51.79 %  वोटों के साथ तुर्की की जनता उन्हें राष्ट्रपति की कुर्सी पर बिठा देती है। अप्रैल में रजब तईब इरदुगान ने देश की संसदीय कार्य प्रणाली को कार्यकारी अध्यक्ष पद से बदलने के लिए जनमत संग्रह करवाया जिसमे उन्हें अपार सफलता  हुई। इसके तहत तुर्की का राष्ट्रपति राज्य प्रमुख के साथ साथ सरकार प्रमुख भी हो जाएगा। सरकार प्रमुख के रूप मे प्रधानमंत्री का पद समाप्त कर दिया जाएगा। इससे राष्ट्रपति की शक्ति और बढ़ जाएगी। राष्ट्रपति और संसद का चुनाव एक ही दिन पांच साल की अवधि के लिए होगा।
        इरदुगान 30 अप्रैल को भारत दौरे पर  आये थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  द्विपक्षीय वार्ता में उन्होंने आतंकवाद, व्यापार में सहयोग, एन.एस.जी में सदस्यता, व्यापर में सहयोग इत्यादि गंभीर मुद्दों पर चर्चा की। उन्होंने भारत आने से पहले कश्मीर मुद्दे पर भी बयान दिया। उन्होंने कहा था कि कश्मीर घाटी में हिंसा रुकनी चाहिए।
       अब ये  देखना दिलचस्प होगा कि इरदुगान राष्ट्रपति के रूप में तुर्की को विकास की किस दिशा में ले जाते हैं। एक ऐसे समय में जब तमाम इस्लाम पसंदों की उम्मीद उनसे जुड़ी हुई है। अब तक के  तेवर ने चाहे इस्राइल के खिलाफ हो या अमेरिका के... उन्होंने यही साबित करने की कोशिश की है कि वह इस्लाम के हिमायती हैं।  

Thursday, 4 May 2017

Muslim personal law

     इस्लाम एक पूर्ण जीवन व्यवस्था है जो जीवन के तमाम मसलों पर बहस करता है और उनका सही हल पेश करता है।  क्योंकि उसकी दी हुई शिक्षा किसी इंसान की बनाई हुई नहीं है बल्कि उस ईश्वर की दी हुई है जो पूरी क़ायनात का मालिक है। उसी ने मर्द और औरत को बनाया।  जीवन जीने के तमाम क़ानून आसमानी किताबों के द्वारा हम तक पहुँचाए और रसूलों के द्वारा उन पर अमल करके ये साबित कर दिया के ये क़ानून इंसानी स्वभाव के तक़ाज़ों को पूरा करने, उसे बाकी रखने और उसे पूरा करने के लिए हैं।
      हमारे देश की एक बड़ी आबादी इस्लाम के बारे में ग़लतफ़हमी का शिकार है। उन्हें लगता है कि उन्हें लगता है की इस्लाम की शिक्षा औरत के लिए ज़ालिमाना है।

मुस्लिम पर्सनल लॉ क्या है ?

     इस्लाम जीवन के तमाम पहलुओं में रहनुमाई करता है और मुसलमानो को एक क़ानून देता है। इन क़ानूनों का एक  हिस्सा वह है जिसमे खानदानी निज़ाम के बारे में हिदायतें दी गई हैं।  इन्हें अरबी में 'क़वानीनने-अहवाले-शख्सिया' और हिंदी में 'खानदानी क़ानून' और अंग्रेज़ी में personal law जाता है। भारत में मुस्लिम शासनकाल के दौरान जीवन के अधिकतर विभागों में इस्लामी क़ानून लागू थे लेकिन जब देश की सत्ता अंग्रेज़ों के हाथ में गई तो उन्होंने धीरे धीरे सभी क़ानून ख़त्म करने शुरू कर दिए। पहले फौजदारी क़ानून ख़त्म किया, फिर गवाही का क़ानून और  मुआहिदों के क़ानून ख़त्म किये,फिर खानदानी क़ानूनों को बदलने की तैयारी की जाने लगी। उस समय मुसलमानो के ज़बरदस्त विरोध के कारण वो ऐसा नहीं कर पाए और मुसलमानो की मांग पर 1937 में 'शरीअत एप्लीकेशन एक्ट' पास हुआ जिसके तहत निकाह, तलाक़, खुला, मुबारत, फ़स्ख़े निकाह(निकाह ख़त्म हो जाना ), हिज़ानित(लेपालक), हिबा, वसीयत, आदि से सम्बंधित मामलों में अगर दोनों पक्ष मुसलमान हैं तो उनका फैसला इस्लामी शरीअत के मुताबिक़ होगा, चाहे उनके रस्मो रिवाज कुछ भी हों। इसी को अब 'मुस्लिम पर्सनल लॉ' के नाम से जाना जाता है।
       देश की आज़ादी के बाद  जब संविधान बना तो उसमे 'मूल अधिकार' के तहत सभी नागरिकों के लिए धर्म और अभिवयक्ति की आज़ादी और हर धर्मों के मानने वालों के लिए अपने धर्म पर चलने की आज़ादी की धाराएँ शामिल की गईं। ये धाराएं मुस्लिम पर्सनल लॉ की सुरक्षा की गारंटी देती हैं , लेकिन संविधान के 'मार्गदर्शक सिद्धांत' (Directive Principls) में एक धारा (धारा 44 ) भी रख दी गई। इसके तहत सरकार देश में 'समान नागरिक सहिंता ' बनाने का प्रयास करेगी। यह दोनों बातें आपस में टकराती हैं, इसी लिए संविधान सभा के मुस्लिम सदस्यों ने उस समय इसका विरोध किया था लेकिन फिर भी ये धारा संविधान में शामिल रही। इसी के तहत समय समय पर मुस्लिम पर्सनल लॉ को खत्म करके देश में समान नागरिक सहिंता को लागू करने की कोशिश की जाती है और देश की अदालतें भी ऐसे फैसले सुनाती हैं जो मुस्लिम पर्सनल लॉ से टकराते हैं।
 
     
 आजकल पूरी मीडिया जगत ने मुस्लिम पर्सनल लॉ के खिलाफ मुहिम छेड़ रखी है। जिसके तहत इस्लाम को बदनाम करने के लिए 'तीन तलाक़' का मुद्दा उछाल कर ये साबित करने की कोशिश की जा रही है कि इस्लाम में औरतों पर बहुत ज़ुल्म होता है। और बेचारी मुस्लिम महिलाएं अज्ञानता के  कारण मीडिया के सामने खुद को मज़लूम साबित करने की कोशिश करती हैं। उन्हें खुद ये नहीं पता कि एक बार में तीन तलाक़ देने के ख़िलाफ़ इस्लाम खुद है। दूसरी बात ये कि इस्लाम सिर्फ इकलौता धर्म है जिसमें मेहर का प्रावधान है। बाकी धर्मो में तो लड़की को विदा करते समय दहेज़ के नाम पर लाखों रूपए नक़द एवं सामान दिया जाता है जबकि इस्लाम में शादी के वक़्त लड़के वाले लड़की को मेहर देते हैं और लड़की इस बात के लिए आज़ाद है कि वह जितनी चाहे मेहर मांग सकती है।
 
       मुस्लिम पर्सनल लॉ का विरोध करने वालो को गोवा का वो क़ानून नहीं दिखाई पड़ता जिसके तहत यदि महिला 25 साल की आयु में बच्चा नहीं पैदा कर पाती तो उसके पति को अधिकार है कि वह दूसरी शादी कर सकता है। और अगर औरत 30 साल की आयु तक बेटा नहीं पैदा करती तो उसके पति को अधिकार है कि वह दूसरी शादी कर सकता है।
   
 मुस्लिम महिलाओं के हक़ में लड़ने वालो को ये नहीं दिखाई देता कि हमारे देश में प्रतिदिन 4800 बच्चियाँ कोख़ में मार दी जाती हैं। हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी कहते हैं कि मैं मुस्लिम बहनों पर ज़ुल्म नहीं होने दूंगा जबकि खुद अपनी बीवी को 35 साल से छोड़ रखा है और तलाक़ भी नहीं दिया। फिर भी मुसलमान तलाक़ देकर औरत को कम से कम आज़ाद तो कर देते हैं। औरत को पूरी आज़ादी होती है तलाक़ के बाद दूसरी शादी करने की या अपनी मर्ज़ी से जीवन गुज़ारने की।
      हमारा प्रधानमंत्री जी से निवेदन है कि मुस्लिम बहनो की चिंता करने से पहले अपनी पत्नी की चिंता कर लें तो बेहतर होगा. हम इस्लाम के क़ानून से खुश है और एक बावक़ार ज़िन्दगी जी रहे हैं अगर आपको हमारी ये खुशाल ज़िन्दगी ज़ुल्म लगती है तो लगे हम इसी में रहना पसंद करेंगे।

ज़िंदगी सड़क किनारे की..

पिछले कई वर्षों में हमारे देश ने दुनिया में अपना नाम और कद दोनो ऊंचा किया है़, विकास के नाम पर ऊंची ऊंची आलीशान इमारतें, चौड़ी-चौड़ी ...