कभी - कभी यूँही राह चलते,
कोई जो मुझसे ये पूछता है कि वक़्त क्या है ?
तो सोचता हूँ मैं क्या बताऊँ कि वक़्त क्या है ,
घड़ी में जो वक़्त है बताऊँ ?
या वक़्त अपना उसे दिखाऊँ ?
घड़ी में जो वक़्त है वो हर पल बदल रहा है,
मगर मेरा वक़्त ग़म के साँचे में ढल रहा है।
बदलते वक़्तों को देख कर मैं ये सोचता हूँ
कि वक़्त में अब वफ़ा कहाँ है ?
जो वक़्त कल था वो अब नहीं है,
जो अब है वो कल नहीं रहेगा।
जो वक़्त मेरा था, साथ मेरे ही थम गया है,
वफ़ा का इक बाब बन गया है,
मगर ठहर कर मैं सोचता हूँ
कि वक़्त कब तक वफ़ा करेगा?
क्या वक़्त को ज़िन्दगी मिलेगी?
या ज़िन्दगी का ये वक़्त होगा?
इसी फिक्र में ये वक़्त मेरा गुज़र रहा है,
गुज़र ही जाएगी ज़िन्दगी भी,
सवाल ज़िंदा रहेगा फिर भी कि वक़्त क्या है?
- मसीहुज़्ज़मा अंसारी

Beautiful words ..
ReplyDeleteBeautiful words ..
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