Thursday, 6 April 2017

Aflatoon

हमारे यहाँ साधारण बोलचाल में अक्सर अफलातून का उदाहरण दिया जाता है। कोई व्यक्ति अपना बड़प्पन दिखा रहा तो कहा जाएगा के 'अरे वो तो खुद को अफलातून समझने लगा है ' तो कभी किसी से लड़ाई हो रही होगी तो सुनने में आएगा के 'अफलातून थोड़ी हो' कुल मिलाकर 'अफलातून' हमारी बोली का एक हिस्सा है. क्या आप जानते हैं क अफलातून थे कौन???
       यूनानी दार्शनिक 'अफलातून' का जन्म ४२३ पूर्व ईसवी में एगिना में हुआ था। उनके पिता का नाम अरिस्टोन और माता का नाम परक्षिटोन था। अफलातून वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने स्कूल की स्थापना की जिसे उस समय अकेडमी कहा जाता था। वह खुद को सुकरात का शिष्य मानते थे। जब सुकरात को मौत की सजा दी गई उस समय अफलातून युवा नौजवान थे। सुकरात की मौत ने अफलातून क दर्शन पर गहरा असर छोड़ा। मशहूर दार्शनिक अरस्तु भी अफलातून के शिष्य रहे हैं वह अफलातून की अकादमी में पढ़े थे।
           अफलातून के पास हर दिन कई विद्वान का जमावड़ा लगा रहता था सभी उनसे कुछ न कुछ सीखने आते थे लेकिन स्वयं अफलातून खुद को कभी ज्ञानी नहीं मानते थे क्योंकि उनका मानना  था के इंसान कभी भी ज्ञानी कैसे हो सकता है जबकि वह हमेशा कुछ न कुछ सीखता रहता है। उनका एक कथन है ''काम को जल्दी पूरा करने की कोशिश मत करो बल्कि बेहतर तरीके से अंजाम देने की कोशिश करो। लोग यह न पूछेंगे के तुमने काम कितने समय में किया, वह तो तुम्हारे काम की बेहतरी को देखेंगे''
         

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