गऊ माता
"मुझे क्यों मार रहे हो ?? मेरा क़सूर क्या है ??"
"तू अपना क़सूर नहीं जानता??"
"नहीं साहब हमने कुछ भी नहीं किया "
"कुछ नहीं किया ?? अरे तू हमारी माता को लेकर जा रहा था "
"साहब यह तो गाय है हम इसे पालने क लिए ले जा रहे हैं "
"झूठ बोल रहा है तू.... मेरी माता को मारने के लिए ले जा रहा था..... हरामी कहीं का..... तुझे मैं नहीं छोडूंगा "
और फिर पूरी भीड़ लाठी डंडों क साथ जूट गई. शोरगुल के बीच में से बचाओ बचाओ की आवाज़े सुनाई दे जा रही थीं। ... राहुल खिड़की से ये मंज़र तो बहुत देर से देख रहा था लेकिन ये "बचाओ " की आवाज़ न जाने क्यों वो बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था.... आखिर उसने खिड़की का दरवाज़ा बंद कर अपने कानो पर हाथ रख लिया.. ऐसा करने से उसे थोड़ा सुकून मिला लेकिन फिर एक ज़ोर से करहाती हुई आवाज़ आई "बचाओ" और फिर सन्नाटा हो गया। राहुल से रहा नहीं गया उसने खिड़की खोल क देखी तो वहां पर एक खून से सनी लाश पड़ी थी और चारो तरफ सन्नाटा। ...सहसा उसके मुँह से निकला -"अरे सब लोग इतनी जल्दी कहाँ चले गए अभी तो यहाँ इतनी भीड़ थी ??" जब तक पीछे से आवाज़ पिताजी की गुर्राती आवाज़ आई...."वहां क्या कर रहे हो??? चलो खिड़की बंद करो" नन्हा राहुल जो इतनी देर से विचारों की कश्मकश में डूब रहा था उसे जैसे तिनके का सहारा मिल गया हो वो दौड़ता हुआ अपने पिता से जाकर लिपट गया और फफकते हुए बोला -"पापा वो अंकल को बचा लो...... पिताजी ने उसे दूर धकेलते हुए गुस्से से कहा -"क्या बकवास कर रहे हो"
"पापा मैंने देखा है जब सब लोग उन्हें मार रहे थे तो वो बार बार कह रहे थे मैंने कुछ नहीं किया फिर भी उनकी किसी ने नहीं सुनी" राहुल ने गिड़गिड़ाते हुए अपने पिता को समझाने की कोशिश की।
"अबे साले मर्द बन मर्द... यह औरतों की तरह क्यों हरकत कर रहा है.... वह हमारी गऊ माता को मारने ले जा रहा था "
"अच्छा गऊ माता को मारना पाप है क्या ??" राहुल ने एक मासूम सा सवाल किया।
"जिस तरह से अपनी माँ को मारना पाप है और अपनी माँ की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है उसी तरह गऊ माता की रक्षा करना हम सब का परम कर्तव्य है क्योंकि वो हम सब की माँ है "
राहुल को अपने पिता का प्रवचन कुछ ज़्यादा समझ तो नहीं आया लेकिन वह आंसू पोंछते हुए वहां से निकल गया। अकसर उसके कानो में बचाओ बचाओ की आवाज़ गूंजती और वह बेचैन सा हो जाता। उसके समझ नहीं आता क करे तो क्या करे।
एक दिन राहुल स्कूल से वापिस घर आ रहा था कि घर के मोड़ पर विश्वनाथ जी क दरवाज़े पर उनकी गाय और कुछ लोग खड़े दिखाई दिए वह देख कर ठिठक गया उसे उस दिन का सभी मंज़र याद आने लगा साथ ही पिताजी की बातें भी। वह एक कोने में छूप कर सबकी बातें सुनने लगा। विश्वनाथ जी कह रहे थे -"यह गाय अब हमारे किसी काम की नहीं। अब इसने दूध देना बंद कर दिया ले जाओ इसे "
दूसरे व्यक्ति ने जवाब दिया "लेकिन कसाई इसकी सही क़ीमत नहीं दे रहा है आजकल उसके भाव कुछ ज़्यादा ही बढ़ गए हैं "
"अरे जितने भी मिले दे दो वैसे भी अब एक मुसीबत ही है ये साला दिन भर सेवा करो और फल कुछ न मिले "
तीसरे व्यक्ति ने हँसते हुए कहा "ऐसी बात मत कहिये विश्वनाथ जी गौरक्षा के नाम पर उस आदमी को मारने में सबसे आगे आप ही थे " उसकी बात सुनकर विश्वनाथ जी खिसयानी हंसी हंसने लगे।
फिर वे सब गाय को लेकर जाने लगे लेकिन गाय आगे ही नहीं बढ़ रही थी जितना आगे खीचें वह विश्वनाथ को मुड़ मुड़ कर देखे जैसे बोल रही हो मुझे मत भगाओ। जब उनलोगों की सारी कोशिश बेकार हो गई तो विश्वनाथ गुस्से में उसे मार मार कर हकाने लगा..... राहुल इतनी देर से यह तमाशा देख रहा था अब उससे बर्दाश्त नहीं हुआ उसे ऐसा लगने लगा क गाय उससे कह रही हो "बचाओ". .. उसने पास में पड़ी एक टूटी लाठी उठाई और जाकर विश्वनाथ पर टूट पड़ा... किसी तरह वह उन्हें छोड़ ही नहीं रहा था..भागकर किसी ने उसके पिता जी को खबर की वह दौड़े भागे आये और राहुल को पकड़ा। जबतक विश्वनाथ जी अच्छा खासा ज़ख़्मी हो चुके थे हाँफते हुए गुस्से में बोले -"क्यों भई रवि तुमने यही संस्कार दिए हैं अपने लड़के को। तुम्हारा लिहाज़ रख क मै कुछ किया नहीं वरना अभी इनको सीधा कर देता। "
पिता जी को गुस्से से लाल होता देख राहुल बोल पड़ा -"पापा आप ही ने तो कहा था गाय हमारी माता हैं और हमे उनकी रक्षा करना चाहिए, अंकल उसे मार कर ज़बरदस्ती घर से भगा रहे थे."
Thodi si story meri jaisi hai..
ReplyDeleteThodi si story meri jaisi hai..
ReplyDeleteBut maine copy nahi ki.. Infact maine tumhari story padhi bhi nahi
ReplyDeletenice keep it on
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