यू.पी का योगी स्टाइल......एक समीक्षा
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बने जुम्मा जुम्मा चार दिन भी नहीं हुए हैं और उनके कामकाज के तौर तरीकों पर संदेह और सवाल उठने लगे हैं। मुख्यमंत्री बनते ही उनका सख्त रुख उनके प्रशंसकों के लिए उम्मीद की नई किरन लाया है तो विरोधियों के लिए चिंता खड़ी कर दी है।
उनका काम करने का तरीक़ा और कड़े तेवर यह दर्शाते हैं कि वह 2019 को ध्यान में रख कर सत्ता की कुर्सी संभाल रहे हैं। उनके ऊपर काम को कर दिखने का प्रेशर है यह प्रेशर इसलिए और भी बढ़ जाता है क्योकि अखिलेश यादव 2012 में बहुमत के साथ सत्ता में आये थे लेकिन 2014 लोकसभा में उन्हें केवल पांच सीट ही मिल सकी थी और अब बीजेपी प्रचंड बहुमत से आई है एवं दो साल बाद लोकसभा चुनाव है।
योगी ने अभी तक जो भी फैसले लिए हैं वो केवल चेतावनी के रूप में हैं लेकिन उनको यह समझना होगा कि केवल चेतावनी देने भर से काम नहीं चलने वाला। योगी सरकार की सबसे बड़ी चुनौती है प्रदेश की प्रशासनिक व्यवस्था को दुरुस्त करना। यू पी में प्रशासन की ज़मीनी स्तिथि की प्रमुख समस्या यह है के स्टाफ की बहुत कमी है। एक एक पंचायत सचिव के पास 6 से 7 ग्राम सभाओं का चार्ज है। एक एक बी डी ओ के पास तीन तीन ब्लॉक का चार्ज है। तहसीलदार नहीं है तो इनकी वजह से बहुत सारी विकास योजनाओं का पैसा खर्च नहीं होता या स्कीम ठीक से लागू नहीं हो पाती या भ्र्ष्टाचार की भेंट चढ़ जाती है।
इसी प्रकार शिक्षा विभाग में टीचर्स के लाखों पद खाली पड़े हैं,पुलिस विभाग में भी एक लाख पद खाली हैं। इनकी भर्तियों पर ध्यान देना आवश्यक है। तभी कुछ हद तक सुशासन हो सकेगा अन्यथा सरकारें आती हैं और कब माज़ी बन जाती हैं पता ही नहीं चलता।
इसी प्रकार शिक्षा विभाग में टीचर्स के लाखों पद खाली पड़े हैं,पुलिस विभाग में भी एक लाख पद खाली हैं। इनकी भर्तियों पर ध्यान देना आवश्यक है। तभी कुछ हद तक सुशासन हो सकेगा अन्यथा सरकारें आती हैं और कब माज़ी बन जाती हैं पता ही नहीं चलता।