Tuesday, 28 March 2017

U.P GOVERMENT

यू.पी का योगी स्टाइल......एक समीक्षा 

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बने जुम्मा जुम्मा चार दिन भी नहीं हुए हैं और उनके कामकाज के तौर तरीकों पर संदेह और सवाल उठने लगे हैं। मुख्यमंत्री बनते ही उनका सख्त रुख उनके प्रशंसकों के लिए उम्मीद की नई किरन लाया है तो विरोधियों के लिए चिंता खड़ी कर दी है। 
        उनका काम करने का तरीक़ा और कड़े तेवर यह दर्शाते हैं कि वह 2019 को ध्यान में रख कर सत्ता की कुर्सी संभाल रहे हैं। उनके ऊपर काम को कर दिखने का प्रेशर है यह प्रेशर इसलिए और भी बढ़ जाता है क्योकि अखिलेश यादव 2012 में बहुमत के साथ सत्ता में आये थे लेकिन 2014 लोकसभा में उन्हें केवल पांच सीट ही मिल सकी थी और अब बीजेपी प्रचंड बहुमत से आई है एवं दो साल बाद लोकसभा चुनाव है। 
         योगी ने अभी तक जो भी फैसले लिए हैं वो केवल चेतावनी के रूप में हैं लेकिन उनको यह समझना होगा कि केवल चेतावनी देने भर से काम नहीं चलने वाला। योगी सरकार की सबसे बड़ी चुनौती है प्रदेश की प्रशासनिक व्यवस्था को दुरुस्त करना। यू पी में प्रशासन की ज़मीनी स्तिथि की प्रमुख समस्या यह है  के स्टाफ की बहुत कमी है। एक एक पंचायत सचिव के पास 6 से 7 ग्राम सभाओं का चार्ज है। एक एक बी डी ओ के पास तीन तीन ब्लॉक  का चार्ज है। तहसीलदार नहीं है तो इनकी वजह से बहुत सारी विकास योजनाओं का पैसा खर्च नहीं होता या स्कीम ठीक से लागू नहीं हो पाती  या भ्र्ष्टाचार की भेंट चढ़ जाती है।
      इसी प्रकार शिक्षा विभाग में टीचर्स के लाखों पद खाली पड़े हैं,पुलिस विभाग में भी एक लाख  पद खाली हैं। इनकी भर्तियों  पर ध्यान देना आवश्यक है। तभी कुछ हद तक सुशासन हो सकेगा अन्यथा सरकारें आती हैं और कब माज़ी बन जाती हैं पता ही नहीं चलता। 

Thursday, 16 March 2017

assembly election

जब से ईवीएम का इस्तेमाल शुरू हुआ है तभी से इस पर विवाद देखने  को मिल जाते हैं। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई क़ुरैशी के अनुसार ईवीएम में गड़बड़ी की कोई गुंजाईश ही नहीं होती और इस पर संदेह इस लिए भी नहीं होना चाहिए क्योंकि इसे अदालत से क्लीन चिट मिली हुई है। फिर भी जिस तरह उत्तर प्रदेश में बसपा प्रमुख मायावती ईवीएम पर सवालिया निशान खड़ा कर रही हैं और उनका साथ सभी हारी हुई पार्टी के सदस्य दे रहे हैं वो अत्यंत हास्यजनक  दिखाई पड़ता है क्योंकि जो लोग आरोप लगा रहे हैं कहीं न कहीं वो भी ईवीएम के सहारे ही चुनाव जीत सत्ता के गलियारे तक पहुँचे हैं। 
          आज ही के अखबार में एक खबर छपी है कि उत्तर प्रदेश के कानपूर शहर में जिन दो सीटों पर बीजेपी चुनाव हारी हैं उन दोनों विधानसभाओं से बीजेपी ने पार्टी के 71 भितरघातियों के नाम की सूची तैयार कर ली है उनपर कार्रवाई होगी। इसे कहते हैं दूरंदेशी। बीजेपी की ४ राज्यों में सरकार बनने के बावजूद वो छोटे स्तर पर हार की इस तरह समीक्षा कर रही है जो वाक़ई क़ाबिल ए तारीफ है। बेहतर होता के मायावती भी अपनी हार क़ुबूल कर हार की समीक्षा कर भविष्य की रणनीति तैयार करतीं। 

Tuesday, 14 March 2017

Bahan km Mayawati

क्या बहनजी डूबती नैया को बचा पाएंगी ??

बहुजन समाज पार्टी एक सार्वभौमिक न्याय , समानता, भाईचारे और सर्वोच्च सिद्धान्त के रूप में स्थापित की गयी थी। लेकिन चार बार मुख्यमंत्री बन उत्तर प्रदेश सँभालने वाली मायावती ने जिस तरह बिना ठोस रणनीति के चुनावी मैदान में उत्तर कर अपनी ही नई अपनी पार्टी की साख की भी लुटिया डुबोई है उससे तो यही प्रतीत होता है कि कांशीराम जी की मेहनत और सख्त रवैया रखने वाली बहनजी इतिहास के काल में समाने वाली हैं। चार बार यूपी की सत्ता चलाने के बावजूद बहन जी  एक ठोस नेतृत्व नहीं  दे पायी इससे बड़ा बसपा का दुर्भाग्य क्या हो सकता है।
  मायावती की असफलता की कहानी की शुरुआत तभी हो गई थी जब 2007 में मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने चौथे कार्यकाल की शपथ ली। सत्ता की कुर्सी पे बैठते ही उन्होंने मुर्तिया और पार्क बनवाने शुरू कर दिए। जो 2012 में उनकी हार का प्रमुख कारण बना। कुछ अच्छे काम भी किये जैसे सख्त और मज़बूत प्रशासन व्यवस्था, बसपा का शासन हमेशा से ही मज़बूत प्रशासनिक व्यवस्था के लिए जाना जाता रहा है लेकिन फिर भी 2012 चुनाव  में सपा ने उनका सफाया कर सत्ता की कुर्सी पे अखिलेश यादव को बैठा दिया। 2012 की हार से सबक लिए बिना ही वो 2014 में लोकसभा के चुनावी दंगल में उत्तर पड़ीं परिणामस्वरूप मोदी लहर के आगे वो अपना खाता तक नहीं खोल सकीं  उसके पश्चात् भी लगातार हार के बावजूद 2017 में कोई ठोस रणनीति नहीं बनायी जिसका नतीजा ये हुआ के अब बसपा के अस्तित्व पे ही खतरा मंडराने लगा है .अब तो उनके लिए राज्यसभा सदस्य बनने के भी सभी रास्ते बंद नज़र आ रहे हैं ।मुख्यमंत्री रहते हुए वे  विधान परिषद की सदस्य थीं लेकिन 2012 में चुनाव हारने के बाद उन्होंने इस्तीफा दिया और राज्यसभा में दाखिल हो गईं क्योंकि उस समय बसपा के 87 विधायक विधानसभा में थे, जोकि इलेक्ट्रॉल कॉलेज प्रोविज़न के हिसाब से राज्यसभा सदस्य बनने के लिए काफी थे लेकिन इस बार स्त्तिथि विपरीत है यूपी में 19 कैंडिडेट जीत पाए हैं ऐसे में उन्हें राज्यसभा में जाने के लिए सपा से गठबंधन करना होगा।

   हैरानी होती है कि एक  लंबी  राजनैतिक पारी खेलने  के बावजूद वह जुझारू खिलाड़ी की तरह बाज़ी पलटने में माहिर नहीं बन सकीं और न ही अपने परंपरागत वोट बैंक को बचा पाई। बल्कि अविकसित बुद्धि का सबूत देते हुए सबसे ज़्यादा मुस्लिम प्रत्याशी को चुनाव में उतार अपनी प्रतिद्वन्दी पार्टी का फ़ायदा करा दिया। अब उनके पास एकमात्र विकल्प यही है के अपनी हार की समीक्षा करते हुए एक मज़बूत रणनीति बनाये वरना बसपा इतिहास बनकर रह जाएगी।    

Monday, 13 March 2017

U.P. ELECTION RESULT



उत्तर प्रदेश में बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिल जाने से यूपी के मुसलमान ऐसा डरे हुए हैं जैसे अभी तक एक इस्लामी हुक़ूमत थी हमारे प्रदेश में और अभी अभी उसका खात्मा हुआ है. अरे भई दूसरी सरकारों ने मुसलमानो के लिए क्या कर दिया ?? क्या 15 सालों में यूपी में दंगे नहीं हुए ?? क्या 15 सालों में बेकसूर नहीं मारे गए ?? क्या इन 15 सालों में शिक्षा स्तर बढ़ गया ?? क्या इन 15 सालों में मुसलमानो को खूब नौकरियाँ मिल गईं ?? अरे मुसलमान कल भी खोमचे लगाता था आज भी लगाता है।  कल भी पंचर बनाता था आज भी बनाता है। तो क्या फर्क पड़ता है ?? कोई भी आये कोई भी जाये। बस तुम हराम हलाल, देवबंदी बरेलवी की बहस में लगे रहो, अपनी गलतियों का ठीकरा अल्लाह के सिर पर फोड़ते रहो..... अरे अल्लाह भी सोचता होगा के कैसे निकम्मे हो गए हमारे बन्दे जो ख़ुशी का क्रेडिट अपनी मेहनत को और दुःख  का क्रेडिट अपनी कमियों के बजाये मुझे दे देते हैं।

Sunday, 12 March 2017

political analysis

एक विश्लेषण बनवास से वास की यात्रा का 

परंपरागत राजनीति से इतर जादुई परिणाम पर आश्चर्य स्वाभाविक है लेकिन आश्चर्य का विषय लोकतान्त्रिक देश में विपक्षी दल का निरंतर नकरात्मक प्रदर्शन भी है. किसी भी लोकतान्त्रिक देश में विपक्ष सत्ता पक्ष का सबसे बड़ा मार्गदर्शक होता है लेकिन प्रभावी विपक्ष तभी हो सकता है जब जनादेश सत्ता पक्ष के कद आसपास हो। जहाँ विगत वर्षों में चुनावी परिणाम के मज़बूत पक्ष स्पष्ट जदेशना है वहीं विपक्ष का कमज़ोर प्रदर्शन चिंता का विषय।
       भाजपा के जीत के कई कारण हैं जिसमे से प्रमुख कारण दूसरे दलों से जनता का मोहभंग तथा परम्परागत
वोटों का अपने दलों से बिखराव। दूसरा कारण संघ तथा भाजपा के कार्यकर्त्ता का जनता से ज़मीनी जुड़ाव एवं अंतर्कलह पर नियंत्रण।  दूसरे दलों की बात करे तो इनकी पराजय का मुख्य कारण परंपरागत वोटों का बिखराव तथा रणनीतिक चूक है। समाजवादी पार्टी की पारिवारिक कलह भी पराजय की पृष्ठभूमि के रूप में देखी जानी चाहिए जिसके परिणामस्वरूप समाजवादी पार्टी की बहु अपर्णा यादव भी अपनी सीट भी नई बचा सकी।  इसमें संदेह नहीं कि समाजवादी पार्टी ने विकास नहीं किया विकास तो हुआ पर दिखा नहीं। बसपा की यदि बात करें तो जनता जिस तरह बसपा को नकारती जा रही है यह प्रतीक है इस बात का की दशकों की राजनीति या सत्ता में भागीदारी के उपरांत अपने समाज की अपेक्षित आवश्यकताओं या सम्पूर्ण भागीदारी पर खरा न उतारना है। जिसके कारण दलित वोटों ने बीजेपी से उम्मीद लगा लिया साथ ही अन्य पिछड़ा वर्ग का एक बड़ा हिस्सा बीजेपी के साथ हो लिया।
 
यह सत्य है कि कांग्रेस ने यूपी, उत्तराखंड में जनादेश खोने के बावजूद पंजाब,गोवा तथा मणिपुर में संतोषजनक प्रदर्शन किया जिस पे कांग्रेस खुश तो नहीं हो सकती लेकिन दिल बहलाने के लिए आंकड़े अच्छे हैं। लेकिन क्या कांग्रेस यूपी उत्तराखंड से सीख लेगी? ये तो समय बताएगा किन्तु बदलाव एवं परिवर्तन की मांग उठने लगी है। कांग्रेस के लिए यही अच्छा होगा कि यूपी, उत्तराखंड से सीखे और पार्टी के दम तोड़ रहे नेतृत्व को धार दे इससे पूर्व की इतिहास के काल में समा जाये।

Saturday, 11 March 2017

assembly election

 पांच राज्यों के चुनावी नतीजे बिल्कुल ऐतिहासिक रहे । देश के सबसे  बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में तो चालीस  बाद कोई गठबंधन सवा तीन सौ के आंकड़े तक पहुँच पाया है.    उत्तराखंड में तो बीजेपी को उम्मीद भी नहीं थी के उसे कामयाबी मिलेगी लेकिन मोदी मैजिक के आगे मुख्यमंत्री हरीश रावत भी नहीं टिक पाए। पंजाब में ज़रूर जनता ने कांग्रेस को सिर आँखों पर बैठा लिया हालाँकि वहां भी आम आदमी  पार्टी उम्मीद लगाये  बैठी थी के सरकार उसी की बननी है। 
           मतों की गिनती शुरू होते ही  ये साफ़ हो गया था  कि गोवा और मणिपुर को छोड़कर बाकि तीनो राज्यों में जनता के मन में कोई संशय नहीं था. लेकिन इन नतीजो ने ये भी साफ़ कर दिया है के  आधुनिक काल में भी जनता को साम्प्रदायिक राजनीति ही भा  रही है तभी तो उत्तर प्रदेश के फतेहपुर की सभी सीटों पर बीजेपी का वर्चस्व रहा है ये वही स्थान है जहाँ पे प्रधानमंत्री ने शमशान वाला बयान देकर काफी चर्चा बटोरी थी. गठबंधन के बावजूद कांग्रेस पहले से भी नीचे लुढ़क गई है. बसपा इस स्तिथि में आ गई की अब उसे राज्यसभा में एक भी सीट नई मिलेगी। अपने काम के बल पर जीत का दावा करने वाले अखिलेश को भी यूपी की जनता ने रिजेक्ट कर ये बता दिया के उसपर मोदी मैजिक ज़्यादा हावी है। अब समय आ गया है के सभी पार्टिया ई वी एम पर अपनी हार का ठीकरा न फोड़ कर अपनी कमियों एवं गलतियों को सुधारने की कोशिश करे और साथ ही बेहतरीन रणनीति बनाने का हुनर बीजेपी से सीखें।            
              

Friday, 10 March 2017

exit poll

समाजवादी पार्टी बिना पेंदी के लोटे  सामान 


जिस तरह एग्जिट पोल के नतीजे आने के बाद सपा की जो बौखलाहट दिखाई पड़  रही है उससे साफ़ ज़ाहिर होता है के समाजवादी विचारधारा को एक नया आयाम देने वाली ये पार्टी अपने उद्देश्य से भटक गई है। मुलायम सिंह
 ने अपनी सत्ता की डोर अखिलेश को थमाते समय सोचा भी नई होगा के उनका पुत्र होने के बावजूद अखिलेश इतनी बचकानी हरकत करेंगे। जिस बुआ को उन्होंने अपनी सभी चुनावी सभाओं में कोसा उसी बुआ से वो गठबंधन करने को तैयार हो गए. हंसी आती है यूपी के सबसे युवा मुख्यमंत्री पर। अरे कम से कम रिजल्ट आने तक का इन्तिज़ार कर लेते। जब अखिलेश ने अपने पिता को दरकिनार कर राहुल का हाथ थामा था तो लगा था के शायद 2 युवा सोच मिलकर राजनीति में नया बदलाव लाएं लेकिन अब तो ऐसा लगता है के अखिलेश चंद सालों में समाजवादी पार्टी की लुटिया डुबो देंगे ठीक उसी तरह जिस तरह राहुल ने कांग्रेस की डुबोई है। इससे एक सन्देश और मिलता है कि राजनीति के लिए  युवा नेतृतव की जगह पुराना अनुभव ही ज़्यादा बेहतर होता है.
चलिए फिर भी हम कल का इन्तिज़ार करते हैं. .. पता ही चल जाएगा यूपी का भविष्य। ..  

Tuesday, 7 March 2017

Internatinol women day

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस , केवल औपचारिकता 

प्रत्येक वर्ष 8 मार्च को महिला दिवस लगभग पूरी दुनिया में  मनाया जाता है। यह महिलाओ के प्रति सम्मान, प्रशंसा, प्यार का प्रतीक है और एक उत्सव की तरह मनाया जाता है इसकी शुरुआत 1914 से हुई। 8  मार्च 1914 को यूरोप में महिलाओ ने अपने अधिकार के लिए हड़ताल की जिसका प्रभाव ये पड़ा के सरकार को उनकी बात माननी पड़ी और इसे महिलाओ की जीत का प्रतीक मानकर इस दिन को महिला दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। और अब हालत यह है केवल औपचारिकता बन कर रह गया है। जिस प्रकार वेलेंटाइन डे को सेलिब्रेट कर हम बाकि दिनों में प्यार का उपहास उड़ाते हैं उसी प्रकार एक दिन महिला दिवस मनाकर साल भर के लिए  भूल जाते हैं।   
 
      पूरी दुनिया  बात छोड़ देते हैं केवल इंडिया की बात करते हैं जहाँ हर 29 मिनट में एक बलात्कार होता है। देश की 38 % महिलाएं  घरेलु हिंसा की शिकार हैं। इसके अलावा दहेज़ के लिए  हत्या, देह वयापार, ऑनर किलिंग, बाल विवाह जैसी चीज़े मज़बूती के साथ हमारे देश में क़दम जमाये हुए हैं। क्या इन सब को जड़ से मिटाये बगैर महिला दिवस मनाने का कोई फ़ायदा है ?? यदि वास्तव में हम महिलाओ का सम्मान करते हैं तो महिलाओ के प्रति बढ़ते अपराध और सदियो से चलती चली आ रही कुप्रथाओं को समाप्त करना होगा।

यूपी चुनाव 2017

 यू.पी. चुनाव मे महिलाओं की लोकतांत्रिक भागीदारी

आज यू पी चुनाव के सभी चरण समाप्त हो गए ,इसके साथ ही नेताओ का एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप का भी दौर लगभग समाप्त हो जाएगा। लेकिन ये चुनाव कही से भी पिछले चुनावो से भिन्न नहीं था। पूरी तरह से पुरे चुनाव में केवल साम्प्रदायिकता हावी रही ,कोई विकास की बात नहीं हुई,कोई रोज़गार की बात किसी नेता ने नहीं उठाई। अब महिलाओ की ही स्तिथि देख लीजिये पूरे यू. पी. मे महिला प्रत्याशी की संख्या लगभग न के बराबर देखने को मिली है, प्रदेश की तीन मुख्य पार्टियों (बसपा , सपा +कांग्रेस ,भाजपा ) की बात करे तो केवल अखिलेश यादव ही हैं जिन्होंने १० फीसदी महिलाओ को टिकट दिया। वही जिस पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष खुद एक महिला हैं उन्होंने केवल पूरे यू. पी. में 18 महिलाओ को टिकट दिया है। यह लोकतंत्र के लिए एक खतरनाक स्थिति है। दूसरी जो सबसे बड़ी समस्या है वो है महिला वोटरों की। 80 % महिलाएं अपनी मर्ज़ी से वोट नहीं डाल पाती हैं। घर के मुखिया ने जो हुक्म दे दिया वोट उसी को डालना उनकी मज़बूरी है. महिला सशक्तिकरण के इस युग हमारे देश की महिलाओ की ये हालत काफी दयनीय है।
    हैरानी की बात तो यह है के हमारा मीडिया नेताओ के भाषण ,उनके आपत्तिजनक शब्द ,लड़ाई झगडे सब कुछ प्रमुखता से उठाता  है लेकिन इस मुद्दे पर लगभग मौन धारण किये रहता है। मीडिया को निष्पक्ष होकर इस मुद्दे को भी उठाना चाहिए और साथ ही  महिलाओ को जागरूक करने की भी आवयश्कता है। ताकि हम अपने लोकतंत्र के अस्तित्व को बचा सके। कहीं ऐसा न हो के इंदिरा गाँधी  के देश से महिला नेतृत्व ही समाप्त हो जाये। 

ज़िंदगी सड़क किनारे की..

पिछले कई वर्षों में हमारे देश ने दुनिया में अपना नाम और कद दोनो ऊंचा किया है़, विकास के नाम पर ऊंची ऊंची आलीशान इमारतें, चौड़ी-चौड़ी ...