Friday, 21 April 2017

World earth day

क्या हम स्वयं को विनाश की ओर धकेल सकते हैं ??


क्या कभी आपके साथ ऐसा हुआ है कि आप सड़क पर चल रहे हैं और सामने गड्ढा आपको दिख रहा हो लेकिन आपने जानबूझ कर पाँव बढ़ा कर गड्ढे में छलांग लगा दी हो ?? अवश्य आपने कभी ऐसा नहीं किया होगा तो फिर क्यों जब पूरी दुनिया ग्लोबल वार्मिंग के संकट से जूझ रही है तब क्यों हम आंखे बंद कर के प्रकृति का दोहन करके खुद को विनाश की तरफ धकेल रहे हैं ?? हम समाज में खुद का रुतबा क़ायम करने के चक्कर में इतनी अधिक मात्रा में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करते हैं जिससे धरती के अस्तित्व पर ही खतरा मंडराने लगा है। 
           हमारी रोज़मर्रा की गतिविधि जैसे - एसी का अधिक प्रयोग, गाड़ी चलाना, पेड़ काटना इत्यादि से लगातार ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ रहा है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 2015 में 60 अरब टन के बराबर ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन हुआ है। सन 1970 से 2000 के बीच बीच 1.3 प्रतिशत के मुक़ाबले 2000 के बाद के वर्षों में सालाना वृद्धि दर 2.4 प्रतिशत हो गयी है। यदि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी नहीं की गई तो 2100 तक वैश्विक तापमान 3.7 से 8 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा।
      पेड़ों के लगातार कटने से कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा लगातार बढ़ रही है जो सूरज की गर्मी को सोख कर धरती को गर्म कर रही है। ग्लोबल वार्मिंग में 90 % योगदान मानवजनित कार्बन उत्सर्जन का है। मानक के हिसाब से एक शहर में लगभग 8 फीसदी एरिया वनों के लिए होना चाहिए लेकिन हमने निजी स्वार्थ के कारण स्तिथि यहाँ तक पहुंचा दी कि शहरों में महज दो फीसदी एरिया तक ही वन सिकुड़ कर रह गए हैं जिससे सभी जंगली जीवों से लेकर मानवजाति के अस्तित्व तक पर खतरा मंडरा रहा है। 
       आखिर कब हम चेतेंगे ?? अभी तो केवल पानी के लिए मारामारी मची हैं कहीं ऐसा ना हो के कल सांस लेने के लिए ऑक्सीजन भी खरीदनी पड़े। हर वर्ष अर्थ डे मनाया जाता है इसके अलावा भी प्रकृति बचाने के लिए तमाम दिवस मनाये जाते हैं लेकिन उससे कोई फ़ायदा नहीं होता। महज औपचारिकता ही पूरी की जाती है और यही कारण है कि इतने भाषण सुनने के बाद , इतने जागरूकता अभियान चलने के बाद भी कोई जागरूक नहीं हो सका। लेकिन अब केवल ज़ुबानी जंग से कुछ नहीं होगा क्योंकि समय हाथ से निकल चूका है। यदि अब सिर्फ एक डिग्री तापमान धरती का और बढ़ गया तो पीने का पानी ही समाप्त हो जाएगा और नासा के मुताबिक़ धरती का औसत तापमान 0.8 प्रतिशत तक बढ़ चूका है। अब भी समय है थोड़ा औपचारिकताओं से निकल कर संभलिये क्योंकि ये धरती भी हम सबकी ही है जिस तरह हम स्वयं को गड्ढे में नहीं धकेल सकते उसी तरह धरती को भी विनाश की ओर धकेलने का हमे कोई हक़ नहीं।     

2 comments:

ज़िंदगी सड़क किनारे की..

पिछले कई वर्षों में हमारे देश ने दुनिया में अपना नाम और कद दोनो ऊंचा किया है़, विकास के नाम पर ऊंची ऊंची आलीशान इमारतें, चौड़ी-चौड़ी ...